आदिवासियों के संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है हूल दिवस


गम्हरिया। राज्य के आदिवासी कल्याण सह परिवहन मंत्री चंपई सोरेन ने कहा कि हूल दिवस आदिवासियों के संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है। सिद्धो-कान्हो, चांद-भैरव आदि की संघर्ष गाथाओं को याद कर अलग झारखंड का निर्माण हुआ। हम कभी ऐसे महा पुरुषों के ऋण को नहीं चुका पाएंगे। उनके आदर्शों के बल पर विकसित राज्य का निर्माण में सभी को योगदान करने की जरूरत है। शुक्रवार को बुरुडीह, सालेमपाथर एवं कांड्रा में सिद्धो कान्हू को श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे सोरेन ने कहा कि अंग्रेजों की गुलामी के खिलाफ़ ऐसे महा पुरुषों ने संघर्ष का बिगुल फूंककर आदिवासी समाज के हक और अधिकार की रक्षा की। कहा कि राज्य सरकार ने आदिवासी-मूलवासियों के लिए राज्य नें अनगिनत विकास योजनाओं को मूर्त रूप दिया है। सरकार आपके द्वार कार्यक्रम से उन्हें जोड़कर सरकार की तमाम योजनाओं का लाभ पहुंचाने का प्रयास किया गया है, वहीं पेयजल, कृषि, सिंचाई, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि का लाभ देकर उनके जीवन स्तर को उठाने का प्रयास किया गया है। इस अवसर पर पूर्व प्रमुख सह झामुमो के वरिष्ठ नेता रामदास टुडू ने कहा कि हूल दिवस पर हमें अपनी अस्मिता की रक्षा का प्रण लेना होगा। समाज में अन्याय के खिलाफ विद्रोह को जगाना होगा। कहा कि 30 जून, 1855 को झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ पहली बार विद्रोह का बिगुल फूंका था। इस अवसर पर पूर्व प्रमुख रामदास टुडू, कृष्णा बास्के, गोपाल महतो, मंत्री के आप्त सचिव चंचल गोस्वामी, गुरु प्रसाद महतो, सनद आचार्या, राम हांसदा, प्रखंड अध्यक्ष जगदीश महतो, मंगल हेंब्रम, बीटी दास, दीपक नायक, राजेश भगत, गौतम महतो, लाल बाबू महतो, बप्पा पात्रा, आदि उपस्थित थे।

Categories:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *