निचितपुर। रंगुनी पंचायत में शबरी जयंती धूमधाम से मनाया गया। शबरी आश्रम से 51 कलश लेकर कुंवारी कन्या व महिलाओं ने भाग लिया। धर्म ध्वजा के साथ श्रीराम के जयकारा व शबरी माता की जयघोष के साथ नगर भ्रमण करते हुए कलश यात्रा इमली तालाब पहुंचा। जहां जजमान सुजीत कुमार भुइयां व धर्मपत्नी रिंकू देवी को पंडित महेश चंद्र पांडेय व लालू पाण्डेय ने धार्मिक मंत्रोच्चार के साथ जल भरण की विधि कराई। जिसके बाद कलश शबरी आश्रम लाया गया। जहां कलश स्थापित किया गया।
कलश यात्रा में कुमकुम कुमारी, सोनी कुमारी, प्रीति कुमारी, राधा कुमारी, रिंकी कुमारी, सिंपी कुमारी, निशा कुमारी, मनीषा कुमारी, तुलसी कुमारी, सुमन कुमारी, दुर्गा कुमारी, दुलारी कुमारी आदि शामिल थी।
माता शबरी व श्रीराम की पूजा अर्चना की गई। माता शबरी व श्रीराम के प्रतिमा पर माल्यार्पण कर आशीर्वाद लिया गया।
माता शबरी आस्था की प्रतीक – महंथ चितरंजन दास
शबरी आश्रम के महंथ चितरंजन दास ने कहा कि माता शबरी आस्था की प्रतीक हैं। ऋषि मातंग की आश्रम में माता शबरी ने श्रीराम के आने का इंतजार किया। माता शबरी श्रीराम के प्रति आस्था रखती थीं। उनके आस्था के कारण ही श्रीराम ने जूठे बेर खाये थे। आस्था पवित्र हो तो भगवान भी मिलते हैं। आज माता शबरी के जयंती अवसर पर आस्था की देवी माता शबरी को शत शत नमन।
शांति व प्रेम की प्रतीक माता शबरी – गणेश भुइयां
अखिल भारतीय भुइयां समाज कल्याण समिति के धनबाद जिला अध्यक्ष गणेश भुइयां ने माता शबरी जयंती अवसर पर कहा कि हमारे धार्मिक ग्रंथों में माता शबरी का जिक्र है। जहां भगवान श्रीराम ने माता शबरी के हाथों जूठा बेर तक खाया। माता शबरी शबर जाति से थी। जहां शादी के समय पशु बलि की प्रथा थी। ऐसा माना जाता है कि शादी के समय पशु बलि को माता शबरी हिंसा मानती थी और पशुओं को बचाने के लिए माता शबरी शादी से भाग कर ऋषि मातंग के आश्रम पहुंच गई। जहां माता शबरी के सेवा भाव को देख ऋषि मातंग ने आश्रय दिया। आज समाज मे शांति व प्रेम की जरूरत है और इसकी स्थापना के लिए माता शबरी के पथ पर चलना होगा।
कार्यक्रम में बतौर अतिथि बसंत महतो, फागु दास, इंद्रदेव भुइयां, अर्जुन भुइयां, जिप सदस्य सुबोध भारती ने अपना विचार साझा किया।
मौके पर उमेश भुइयां, विष्णुदेव भुइयां, मनोज कुमार भुइयां, जगदीश भुइयां, दिनेश आज़ाद, बचु हरिजन भुइयां, राम विलास भुइयां, सुरेश भुइयां, इंदर भुइयां, आनंद भुइयां, राम लखन भुइयां, साधु शरण दास, मनोज निषाद, अशोक निषाद आदि मौजूद थे।