.बनस्ते डाकिला गज, बरसकु थोरे आसिछी रोजो,
सरायकेला / सोमवार व मंगलवार को सरायकेला-खरसावां के ओड़िया बहुल क्षेत्रों में रज संक्रांति का पर्व मनाया जायेगा। ओड़िया पंचाग के अनुसार रज पर्व साल का पहला पर्व है। सोमवार को पहली रज व मंगलवार को रज संक्रांति का आयोजन किया जायेगा। रज पर्व महिलाओं को समर्पित पर्व है। रज पर्व में महिलाओं के झुला झूलने की वर्षो पुरानी परंपरा है। रज मिलन समारोह का भी आयोजन किया जाता है। परंतु इस वर्ष कोविड-19 को लेकर लोगों में रज पर्व को लेकर उत्साह की कमी देखी जा रही है। इस वर्ष रजो मिलन समारोह का आयोजन नहीं होगा। सिर्फ घरों में पूजा अर्चना करने अलावे लोग अच्छे व्यंजन बना कर खायेंगे। इस वर्ष रज संक्रांति सादगी के साथ मनाया जायेगा। सरायकेला खरसावां जिला के ओड़िया बहुल गांवों में आज भी लोग इस परंपरा को निभाते है। पेड़ों में रस्सी लगा कर झुला बनाने व झुला को विभिन्न तरह के फूलों से सजा कर झूलते है, तो कई जगह पर पारंपरिक तरीके से लकडी का झुला बना कर महिलायें झुलती है। रज पर्व में झुला झुलने के दौरान महिलायें सामुहिक रुप से रजो गीत गाती है। रज पर्व के लिये खास तौर पर ओडिया भाषा में रजो गीत भी तैयार किया जाता है। महिलायें इस वर्ष घरों में रस्सी से तैयार झूला झूल कर रज पर्व मनायेगी। रज पर्व पर घरों में कई तरह के पकवान बनाये जाते है। चावल के पावड़र से तरह तरह के पीठा तैयार किया जाता है। पीठा को प्रसाद चढाने के साथ साथ लोग बडे ही चाव से खाते है। रज संक्रांति के दौरान पान खाने की भी परंपरा है। आषाढ़ माह के आगमन पर मोनसुन के स्वागत में ओड़िया समुदाय के लोग इस त्योहार को मनाते है। किंवदंती के अनुसार रजोत्सला संक्रांति के मौके पर धरती मां विश्रम करती है। इस दौरान किसी तरह का कृषि कार्य नहीं होता है। रज पर्व के पश्चात धरती माता की पूजां की जाती है, ताकि खेतों में फसल की अच्छी पैदावार हो। पर्व के दो दिनों तक जमीन पर न तो हल चलाया जाता है और न ही खोदाई की जाती है। रज पर्व को मनाते हुए लोग साल के पहली बारिश मोनसून का स्वागत करते है।