धनबाद। सामाजिक कार्यकर्ता सविता कुमारी ने बाल दिवस को लेकर अपना विचार साझा करते हुए कहा कि राष्ट्र निर्माण में कई तत्व शामिल है जिसमे बच्चे भी हैं। बच्चो को बाहर रख कर आप विकास को कभी पूर्ण नही कर सकते। हमारा समाज और देश किस दिशा में जा रहा है उसकी पहचान बच्चो को देखा कर किया जा सकता है। बच्चो को लेकर पहली जिम्मेवारी परिवार को और उसके बाद स्कूल की आती है। लेकिन इस बीच राजनीति की भूमिका को हम नजर अंदाज कर देते हैं। बच्चो की समस्या और जटिल मानसिक दशा को लेकर राजनीति कभी गंभीर नहीं रहा है। वर्तमान में विकास के साथ बच्चो के व्यवहार में बदलाव आ रहा है। परिवार के साथ समय बिताने के बजाय बच्चे मोबाइल पर ज्यादा समय गुजार रहे हैं। जिसके कारण बच्चे ना तो परिवार को समय दे रहे और परिवार के अन्य सदस्यों की भी यही स्थिति है जिसके कारण बच्चे ना तो परिवार से संपर्क रखते हैं और ना ही समाज से जुड़ते हैं। सामाजिक के प्रति बच्चो का नजरिया नकारात्मक होता जा रहा है। एकल परिवारवाद के विकास के साथ बच्चो की समस्या और जटिल होती जा रही है।
प्राथमिक तौर पर बच्चो का ख्याल अभिभावक रख लेते हैं और फिर स्कूल की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके बावजूद बच्चो के विकास और उनके अधिकार को लेकर saj me संवेदना तो है । मगर हम कभी गंभीर नहीं हुए और ना राजनीति गंभीर दिखी। शिक्षा का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार जीवन सुरक्षा का अधिकार जैसे नियमो के बावजूद करोड़ों बच्चे किसी ना किसी समस्या से जूझ रहे हैं।
आज बाल दिवस है देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जयंती का अवसर भी है। पंडित नेहरू के जयंती अवसर पर बच्चो के अधिकार और सुरक्षा को लेकर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। जिनके अभिभावक सक्षम है उनकी स्थिति थोड़ी ठीक है। लेकिन जिनके अभिभावक कमजोर तबका के बच्चो की स्थिति आज भी ठीक नही है। न शिक्षा न स्वास्थ्य और न हीं सामाजिक स्तर पर और न ही सुरक्षा के लिहाज से। सरकारी दावों और जमीनी हकीकत में बहुत अंतर है। बच्चो से जुड़े अपराध को लेकर भी समाज और सरकार गंभीर नहीं है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू के जयंती अवसर पर और बाल दिवस के मौके पर जरूरत है कि बच्चो को लेकर हम गंभीरता से विचार करें। तभी बाल दिवस की सार्थकता पूर्ण होगी।