झरिया। वर्ष 2023 में हमारे देश के लगभग दो-तिहाई लोगों के लिए 2013 के खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मुफ्त राशन की घोषणा इस बात की स्वीकारोक्ति है कि भूख का भूत देश के करोड़ों लोगों को सता रहा है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति को “बहुत गंभीर” बताने के खिलाफ मोदी सरकार के मुखर खंडन के बावजूद आज यही सच्चाई है। अब केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को बिलय कर 81.35 करोड़ लोगों को 5 किलो अनाज मुफ्त अनाज दिए जाने का ढीढोंरा पीटा जा रहा है. जबकि उन्हें अनुदानित दर पर मिलने वाले 3 रु किलो चावल, 2 रु किलो गेहूं और 1 रू किलो मोटा अनाज से वंचित कर दिया जायेगा जो खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मिल रहा था। नतीजतन, 5 किलो सब्सिडी वाले खाद्यान्न की भरपाई के लिए, जो पोषण के स्तर को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी है, लोगों को खुले बाजार में जाना होगा जहां गेहूं 30 रु किलो और चावल 40 रु प्रति किलो बिक रहा है। यह जीवित रहने के लिए संघर्ष कर रहे करोड़ों परिवारों के खिलाफ एक क्रूर मजाक होगा। उल्लेखनीय है कि गरीबों को एक महीने के राशन मे 5 किलो चावल के लिए अब 15 रु के बजाय 200 रूपये, और गेंहू के लिए 10 रुपये के बजाय 150 रूपये तक देने होंगे। माकपा की झारखंड राज्य कमिटी केंद्र सरकार से मांग करती है कि नि:शुल्क के साथ – साथ अनुदानित दर पर दिए जाने वाले अनाज की आपूर्ति जारी रखे ताकि गरीबों को भूखमरी का शिकार होने से बचाया जा सके.
इधर झारखंड मे भी 15 नवंबर 2020 को राज्य स्थापना दिवस के मौके पर गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों के लिए जोर – शोर से शुरू की गई अनाज आपूर्ति की योजना भी बंद हो गई है. इस योजना के तहत राज्य के 15 लाख 36 हजार हरा राशन कार्डधारियों को अनुदानित मूल्य पर प्रति युनिट (व्यक्ति) 5 किलो अनाज दिया जा रहा था जो पिछले नवंबर महीने से बंद है.इस मामले मे झारखंड के खाद्य आपूर्ति मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव का कहना है कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) राशन की आपूर्ति करने से इंकार कर रहा है. इस परिस्थिति मे अनाज की बेहद कमी वाले राज्य झारखंड मे गरीब परिवारों के समक्ष भूखमरी की स्थिति पैदा हो गई है. क्योंकि इस साल राज्य मे पर्याप्त वर्षा नहीं होने से राज्य के 22 जिलों के 222 प्रखंडों मे धान की खेती नहीं हो सकी है. राज्य मे धान होने से किसानों के पास भोजन के लिए वर्ष के कुछ महीनों तक चावल उपलब्ध रहता है.
दलित शोषण मुक्ति मंच राज्य सरकार से भी मांग करती है कि अनाज के टेंडर की प्रक्रिया का जल्द हल निकाले और अपनी घोषणा के अनुसार 20 लाख परिवारों को अनुदानित दर पर अनाज दिया जाने की गारंटी करे.