टाटा डीएवी स्कूल जामाडोबा में संस्कृत सप्ताह का समापन

जोड़ापोखर। मंगलवार टाटा डीएवी स्कूल जामाडोबा में चल रहे संस्कृत सप्ताह का समापन श्री भूपेन्द्र प्रसाद राउत डीएसपी सिंदरी धनबाद और जोड़ा पोखर थाना इंचार्ज श्री राजेश प्रकाश सिन्हा की अध्यक्षता में संपन्न हुआ । विद्यालय के प्राचार्य श्री अनुज कुमार मिश्रा ने सर्वप्रथम पौधे देकर अतिथि महोदय का सम्मान किया। मौली घोष और ऋतिका ने शिवतांडवस्तोत्र पर मंगलाचरण नृत्य प्रस्तुत किया और माही के नेतृत्व में कक्षा आठवीं के छात्राओं ने संस्कृत में मंगल गीत गाकर मुख्य अतिथि का स्वागत किया ।

यह संस्कृत सप्ताह 27 अगस्त 2024 से प्रारंभ हुआ था। संस्कृत सप्ताह का शुभारंभ प्राचार्य अनुज कुमार मिश्रा ने दीप प्रज्वलन और मां शारदा के चित्र पर माल्यार्पण कर किया था । वहां उपस्थित बच्चों और शिक्षकों ने भी पुष्प अर्पित किए । इस संस्कृत सप्ताह में अनेक प्रकार के कार्यक्रम कक्षा पांचवी से लेकर दसवीं तक के बच्चों ने किया। इसमें कुल 100 बच्चों ने भाग लिया ।

बच्चों ने मन: सत्येन शुध्यति वैदिक मंत्र पर नृत्य कर इस कार्यक्रम की शुरुआत की । इसमें शिवतांडव, मधुराष्टकम् ,महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रं,लिंगाष्टकम्, भैरवाष्टकम् श्रीराम स्तोत्रम्, हनुमत स्तोत्रं, रम्या रम्या संस्कृत भाषा जैसे अनेकों मधुरगीत , नाटक ,संसद सभा, संवाद और हिंदी फिल्मों के प्रचलित गानों का संस्कृत में गायन किया गया। प्रत्युष वर्णवाल, अमृत कौर, प्रियांशु सिंह और आदित्य कुमार सिंह ने संस्कृत भाषा में भाषण प्रस्तुत किया । विद्यालय के प्राचार्य ने भी संस्कृत में गीत और श्लोक प्रस्तुत किया और बच्चों का हौसला वर्धन किया। डी एस पी सिंदरी के द्वारा यह बताया गया कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। यह सबसे प्राचीन भाषा है ।

उन्होंने यह कहा कि इस भाषा को जो इस विद्यालय के द्वारा सम्मान दिया गया वह बहुत ही सराहनीय है। उन्होंने यह भी कहा कि संस्कृत संस्कार की गई भाषा है इसके अध्ययन से हमारे अंदर संस्कार आते हैं। भारतीय होने के कारण हम सभी को संस्कृत अवश्य पढ़ाना चाहिए।कार्यक्रम के अन्त में डी एस पी सिन्दरी महोदय द्वारा संस्कृतसमारोह में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र दिया गया।

कार्यक्रम को सफल बनाने में अमरेश नंदन सिंह, हरिश्चन्द्र मिश्र , श्रुति पाठक, अभिषेक पाठक, शिवम् महतो आदि शिक्षकों की महत्तवपूर्ण भूमिका रही। संस्कृतसप्ताह समारोह के संचालन एवं व्यवस्था में संस्कृत शिक्षक धर्मराज का योगदान भी सराहनीय रहा।

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