कतरास। चैत्र के उपरांत आता है वैशाख । वैशाख शुक्ल तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं । इसे उत्तर भारत में ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है । इसे व्रत के साथ त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है । अनेक कारणों से अक्षय तृतीया का महत्त्व है । साढे तीन मुहुूर्तों में से एक पूर्ण मुहूर्त ‘अक्षय तृतीया’ पर तिलतर्पण करना, उदकुंभदान (उदककुंभदान) करना, मृत्तिका पूजन तथा दान करने का प्रघात है । पुराणकालीन ‘मदनरत्न’ नामक संस्कृत ग्रंथ में बताए अनुसार, ‘अक्षय तृतीया’ कृतयुग अथवा त्रेतायुगका आरंभदिन है । अक्षय तृतीया की संपूर्ण अवधि, शुभ मुहूर्त ही होती है । इसलिए, इस तिथिपर धार्मिक कृत्य करनेके लिए मुहूर्त नहीं देखना पडता । इस तिथि पर हयग्रीव अवतार, नरनारायण प्रकटीकरण तथा परशुराम अवतार हुए हैं । इस तिथि पर ब्रह्मा एवं श्रीविष्णु की मिश्र तरंगें उच्च देवता लोकों से पृथ्वी पर आती हैं । इससे पृथ्वीपर सात्त्विकता की मात्रा १० प्रतिशत बढ जाती है । इस कालमहिमा के कारण इस तिथिपर पवित्र नदियों में स्नान, दान आदि धार्मिक कृत्य करने से अधिक आध्यात्मिक लाभ होते हैं । इस तिथि पर देवता-पितर के निमित्त जो कर्म किए जाते हैं, वे संपूर्णतः अक्षय (अविनाशी) होते हैं । सनातन संस्थाद्वारा संकलित इस लेखमें अक्षय तृतीया का महत्त्व और उसे मनाने का शास्त्रीय आधार जान लेंगे I इस वर्ष कोरोना की पृष्ठभूमि पर अनेक स्थानों पर यह त्योहार सदैव की भांति करने में मर्यादाएं हो सकती हैं । इस लेखमें कोरोना के संकटकाल के निर्बंध (यातायात बंदी) में भी अक्षय तृतीया कैसे मनाएं यह भी समझ लेंगे I
अक्षय फल प्रदान करनेवाला दिन
पुराणकालीन ‘मदनरत्न’ नामक संस्कृत ग्रंथ में बताए अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्त्व बताया है । वे कहते हैं, ..
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं ।
अर्थात, इस तिथि को दिए हुए दान तथा किए गए हवन का क्षय नहीं होता । इसलिए मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है । देवों तथा पितरों के लिए इस तिथि पर जो कर्म किया जाता है, वह अक्षय; अर्थात अविनाशी होता है ।’
साढेतीन मुहूर्तों में से एक – अक्षय तृतीया की तिथि को साढेतीन मूहूर्तों में से एक मुहूर्त माना जाता है । अक्षय तृतीया के दिन सत्ययुग समाप्त होकर त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ, ऐसा माना जाता है । इस कारण भी यह संधिकाल ही हुआ । संधिकाल अर्थात मुहूर्त कुछ ही क्षणों का होता है; परंतु अक्षय तृतीया के दिन उसका परिणाम 24 घंटे तक रहता है । इसलिए यह पूरा दिन ही अच्छे कार्यों के लिए शुभ माना जाता है ।
अवतारों के प्रकटीकरण का दिन – अक्षय तृतीया के दिन ही हयग्रीव अवतार, परशुराम अवतार एवं नरनारायण अवतार का प्रकटीकरण हुआ है ।