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सिंदरी| डीएवी पब्लिक स्कूल सिंदरी, धनबाद में सोहराई सप्ताह का समापन किया गया। सप्ताह का आयोजन सोमवार सोहराई दिवस के अवसर पर आरंभ हुआ था जिसका उद्देश्य बच्चों और समाज को इसके प्रति जागरूक करना है। कार्यक्रम के प्रशिक्षक मुकेश कुमार तिवारी ने कहा कि सोहराई कला एक आदिवासी कला है। इसका प्रचलन हजारीबाग जिले के बादम क्षेत्र में आज से कई वर्ष पूर्व शुरू हुआ था। इस क्षेत्र के इस्को पहाड़ियों की गुफाओं में आज भी इस कला के नमूने देखे जा सकते हैं। कहा जाता है कि बादम राजाओं ने इस कला को काफी प्रोत्साहित किया था। जिसकी वजह से यह कला गुफाओं की दीवारों से निकलकर घरों की दीवारों में अपना स्थान बना पाने में सफल हुई थी। धीरे – धीरे इस कला का विकास हुआ और बाद के दिनों में इस लिपि की जगह कलाकृतियों ने ले ली। जिसमें फूल, पत्तियां एवं प्रकृति से जुड़ी चीजें शामिल होने लगीं। कालांतर में इन चिन्हों को सोहराई या कोहबर कला के रूप में जाना जाने लगा। धीरे-धीरे यह कला राजाओं के घरों से निकलकर पूरे समाज में फैल गयी। राजाओं ने भी इस वृद्धि कला को घर-घर तक पहुंचाने में काफी मदद की। पर आज मदद तो दूर इस सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिये भी कोई आगे नहीं आता।

प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले बच्चों में रूमा पॉल,रेशमा मरांडी,आलोक कुंभकर,,प्रोमित कुमार,रोशनी कुमार,निखिल कुंभकर,रुद्र घोषाल,गौरव कुम्भकार,दीप्ति कुमारी, कुमारी मौसम, फरिहा खातून, पल्लवी,अनमोल सहिश,

आर्यन कुमार शामिल थे। इस अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य आशुतोष कुमार ने कहा कि झारखंड की संस्कृति और सभ्यता हमारी परंपराओं और कलाकृतियों में प्रदर्शित होती है। डीएवी सिंदरी के बच्चें सोहराई कला से प्रशिक्षण प्राप्त कर के आने वाले पीढ़ियों में इस कला को प्रस्तुत करेंगे। सोहराई कला के चित्रों और कलाकृतियों को विद्यालय के भित्ति चित्र के रूप में देखा जा सकता है।इस अवसर पर विद्यालय के सभी शिक्षक और कर्मचारी उपस्थित थे।

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