बिहार औरंगाबाद से धर्मेन्द्र गुप्ता
सोमवार को औरंगाबाद भाजपा के नगर मंडल के द्वारा वीर कुंवर सिंह स्मृति भवन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जयंती पर पुष्पांजलि और संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में माननीय विधान परिषद दिलीप कुमार सिंह उपस्थित रहें । विधान परिषद दिलीप कुमार सिंह और जिला उपाध्याछ सतीश कुमार सिंह ने अपने संबोधन में कहा की पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला
पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक दार्शनिक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिज्ञ थे। उनके द्वारा प्रस्तुत दर्शन को ‘एकात्म मानववाद’ कहा जाता है। जिसका उद्देश्य एक ऐसा ‘स्वदेशी सामाजिक-आर्थिक मॉडल’ प्रस्तुत करना था जिसमें विकास के केंद्र में मानव हो, संपूर्ण राष्ट्र हो।
भारत को देश से बहुत अधिक आगे बढ़कर एक राष्ट्र के रूप में और इसके निवासियों को नागरिक नहीं अपितु परिवार सदस्य के रूप में मानने के विस्तृत दृष्टिकोण का अर्थ है एकात्म मानववाद। मानवीयता के उत्कर्ष की स्थापना यदि किसी राजनैतिक सिद्धांत में हो पाई है तो वह है पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद का सिद्धांत!
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने पश्चिमी ‘पूंजीवादी व्यक्तिवाद’ एवं ‘मार्क्सवादी समाजवाद’ दोनों का विरोध किया, लेकिन आधुनिक तकनीक एवं पश्चिमी विज्ञान का स्वागत किया। ये पूंजीवाद एवं समाजवाद के मध्य एक ऐसी राह के पक्षधर थे जिसमें दोनों प्रणालियों के गुण तो मौजूद हों लेकिन उनके अतिरेक एवं अलगाव जैसे अवगुण न हो।
युवाओं को संबोधित करते हुए बताया कि एकात्म मानववाद की वर्तमान समय में भी प्रासंगिक है
आज विश्व की एक बड़ी आबादी गरीबी में जीवन यापन कर रही है। विश्वभर में विकास के कई मॉडल लाए गए लेकिन आशानुरूप परिणाम नहीं मिला। अतः दुनिया को एक ऐसे विकास मॉडल की तलाश है जो एकीकृत और संधारणीय हो। एकात्म मानववाद ऐसा ही एक दर्शन है जो अपनी प्रकृति में एकीकृत एवं संधारणीय (integral and Sustainable) है।
एकात्म मानववाद का उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना है। यह प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय उपभोग का समर्थन करता है जिससे कि उन संसाधनों की पुनः पूर्ति की जा सके।
एकात्म मानववाद न केवल राजनीतिक बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता को भी बढ़ाता है। यह सिद्धांत विविधता को प्रोत्साहन देता है अतः भारत जैसे विविधतापूर्ण देश के लिए यह सर्वाधिक उपयुक्त है।
एकात्म मानववाद का उद्देश्य प्रत्येक मानव को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना है एवं ‘अंत्योदय’ अर्थात समाज के निचले स्तर पर स्थित व्यक्ति के जीवन में सुधार करना है। दो धोती, दो कुर्ते और दो वक्त का भोजन ही मेरी संपूर्ण आवश्यकता है। इससे अधिक मुझे और क्या चाहिए। इस वाक्य में दीनदयाल जी के एकात्मवाद और अंत्योदय का मूलमंत्र और दर्शन को आसानी से समझा जा सकता है।
अंत्योदय शब्द में संवेदना है, सहानुभूति है, प्रेरणा है, साधना है। दीनदयाल कहा करते थे कि ‘जब तक अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उदय नहीं होगा, भारत का उदय संभव नहीं है। अंत्योदय के मूल में दीनदयाल जी ने कोई चुनावी लाभ नहीं देखा क्योंकि उनका जीवन स्वतः अंत्योदय से प्रेरित था। वह समाज की उन्नति के लिए अपनी हड्डी गलाने में विश्वास रखते थे। उनके शब्द और आचरण में असमानता नहीं थी। दीनदयाल जी के अंत्योदय का आशय राष्ट्रश्रम से प्रेरित था। वह राष्ट्रश्रम को राष्ट्रधर्म मानते थे। वे किसी संप्रदाय या वर्ग की सेवा का नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र की सेवा का पक्षधर थे। उनका मानना था कि हिमालय और हिंद महासागर से परिवेष्ठित भारत खंड में जब तक हम एकरसता, कर्मठता, समानता, संपन्नता, ज्ञानवत्ता, सुख और शक्ति की संपत्-जाह्नवी (सात गंगा) का पुण्य प्रभाव नहीं ला पाते, तब तक हमारा भगीरथ साधना पूरा नहीं होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंत्योदय शब्द की अपनी गरीबोन्मुखी योजनाओं से उसे साकार करने की दिशा में एक नहीं अनेक साहसिक निर्णय लिए हैं, केन्द्र सरकार कई जनहित की योजनाएं चला रही है। मोदी सरकार में दीनदयाल जी के अंत्योदय का सपना धीरे-धीरे साकार हो रहा है। कहना गलत नहीं होगा कि दीनदयाल उपाध्याय जी का एकात्म मानववाद और अंत्योदय का दर्शन भारत जैसे कल्याणकारी देश में सदा प्रासंगिक रहेगा। इस मौके पे ग्रामीण क्षेत्र में अच्छा खेल खेल कर प्रखंड और जिला का नाम रोशन करने वाले खिलाड़ियों को भी सम्मानित किया गया।
इस मौके पे प्रदेश कार्य समिती सदस्य अशोक कुमार सिंह, महिला मोर्चा के अध्यक्ष अनीता सिंह ,कार्यक्रम के प्रभारी जुलेखा खातून , जिला महामंत्री मुकेश सिंह,उषा सिंह सोशल मीडिया के जिला संयोजक राहुल कुमार , मंडल अध्यक्ष पिंटू सिंह, अति पिछड़ा मोर्चा के अध्यक्ष विनोद चंद्रवंशी सहित निम्लिखित लोग उपस्थित रहे।