सराईकेला/ राज्य की सांस्कृतिक राजधानी “सरायकेला -खरसावां” अंतर्गत प्रसिद्ध धार्मिक नगरी खरसावां में देवताओं की शक्ति वाला दुर्लभ ब्रह्मकमल खिला है।ब्रह्म कमल को फूलों का सम्राट भी कहा गया है। यह कमल रात में ही खिलता है,सुबह होते ही इसका फूल अपने आप बंद हो जाता है।इसे खिलते देखना स्वप्न समान ही है। धार्मिक विश्वास सह आस्था है कि अगर इसे खिलते समय देख कर कोई कामना की जाए तो अतिशीघ्र पूरी हो जाती है।खरसावां बेहरसाहि निवासी श्री भानु प्रताप नंदा ने अपने आवास में पिछले दो साल पहले बहुत ही दुर्लभ ब्रह्मकमल का पौधा लगाया था। इस पौधे में शनिवार देर शाम को ब्रह्मकमल खिल गए।श्री भानु प्रताप नंदा समेत उनका पूरा परिवार इसे एक धार्मिक चमत्कार से कम नही मान रहे हैं ।पेशे से शिक्षक श्री नंदा का पूरा परिवार ईश्वरीय कृपा पर अटूट आस्था एवं भक्ति रखते है।उनके आवास में ब्रह्मकमल खिलना क्षेत्र में धार्मिक चर्चा का विषय बना हुआ आस पास के लोग देर रात को ही दुर्लभ ब्रह्मकमल के दर्शनार्थ उनके आवास पहुंचे। शिक्षक श्री भानुप्रताप नंदा ने बताया कि यह पवित्र ब्रह्मकमल हिमालय की बर्फीली वादियों में लगभग तीन हज़ार मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इस दुर्लभ पुष्प का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। इसके दर्शन मात्र से ही मन एवं आत्मा को एक शांति और सुकून का एहसास होता है साथ ही शरीर मे ऊर्जा का संचार होता है।अपनी विशेषताओं की वजह से यह दुनियाभर में लोकप्रिय है और लोग इसको देखने के लिए तरसते हैं। ब्रह्म कमल अर्थात ब्रह्मा का कमल, यह फूल मां नन्दा का प्रिय पुष्प है, इसलिए इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोडऩे के भी सख्त नियम होते हैं। कहा जाता है कि आम तौर पर फूल सूर्यास्त के बाद नहीं खिलते, पर ब्रह्म कमल एक ऐसा फूल है जिसे खिलने के लिए सूर्य के अस्त होने का इंतजार करना पड़ता है। ब्रह्म कमल औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। इसे कैंसर रोग की दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इससे निकलने वाले पानी को पीने से थकान मिट जाती है, साथ ही पुरानी खांसी भी काबू हो जाती है। इस फूल की विशेषता यह है कि जब यह खिलता है तो इसमें ब्रह्म देव तथा त्रिशूल की आकृति बन कर उभर आती है। ब्रह्म कमल न तो खरीदा जाना चाहिए और न ही इसे बेचा जाता है। इस पुष्प को देवताओं का प्रिय पुष्प माना गया है।