संत कबीर के दृष्टि कोण में अध्यात्म : मंहत उचितानंद

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धनबाद | भला कौन नहीं जानता संत कबीर को जिनके द्वारा समाज के हर कुरीतियों को आध्यात्मिक स्पष्ट कविताओं के माध्यम से कठिन प्रहार करते हुए मानव में आध्यात्मिक शक्ति प्रवेश हेतु प्रयास किए हैं ।‌ सर्वप्रथम अहिंसा इनका मुख्य सिद्धांत है। अहिंसा व्रत पालन करने वाले ही कबीर पंथ में प्रवेश कर सकते हैं। आचार्य, महंत धर्माधिकारी, बैरागी, एवम दास पदों से क्रमशः समय एवं योग्यतानुसार विभूषित किया जाता है।‌ इनके पंथ में प्रवेश हेतु किसी भी जाति, धर्म, भाषा एवम किसी भी क्षेत्र के निवासी कर सकते हैं ।‌ अहिंसा पर जोर देते हुए कबीर द्वारा कहा गया है कि जीव मत मारो बापुरो सबका एक ही प्राण हत्या कबहुँ ना छुटिहै कोटिन सुनो प्राण। अर्थात किसी भी धर्म द्वारा बलि प्रथा के माध्यम से जो भी व्रत पूजा या कोई भी यज्ञ किया जाता है वह गलत है । क्योंकि मानव जीव जन्तु ,पशु ,पक्षियों ,कीड़े मकोड़े सबों में एक ही प्राण है , जिसे मरने पर एक ही प्रकार का दुख सबों को होता है। दुख दोगे दुख पाओगे सिद्धांतनुसार हत्या के कारण तुम्हारे द्वारा जो भी जीवो को दुख दिया गया है उसकी सजा तुझे मिलेगा । कभी भी किसी हालत में माफ नहीं किया जाएगा । तुम्हारे द्वारा एक बार क्या करोड़ों बार भी पूजा व्रत ,दान ,तीर्थ या यज्ञ किया जाएगा , फिर भी हत्या का सजा से छुटकारा नहीं होगा । जिन पुरोहितों पुजारियों द्वारा बलि प्रथा चलाया गया है , वह भी गलत है और उनको भी सजा मिलेगा ।‌ निर्भीक भाव से कबीर ने कहा है कि पांडे निपुण कसाई इस संसार में जो भी प्राणी शाकाहारी नहीं बने हैं वे अध्यात्म के प्लेटफार्म पर भी नहीं चढ़े हैं ।‌ आध्यात्म रूपी गाड़ी में सवार होना तो असंभव ही है अपने दुर्वचन वाणियो से भी अगर कोई किसी को तकलीफ देता हो तो कबीर के दृष्टिकोण में वह भी हिंसा ही है । इसीलिए तो उन्होंने कहा है कि वाणी ऐसी बोलिए सुख उपजे चहुंओर वशीकरण यह मंत्र है त्यागो वचन कठोर । कबीर का दूसरा सिद्धांत है अंधविश्वास उनके दृष्टिकोण में माता-पिता गुरु अग्रज ही पूजने योग्य हैं । मूर्ति पूजा पत्थर ,लकड़ी या अन्य कोई भी चीज पूजने योग्य नहीं है व्यंगात्मक ढंग से कबीर ने कहा है कि हिले ना डोले ना मुंह से बोले कैसे हम अपनी विपत्ति खोलें स्पष्ट कई कविताओं के माध्यम से कबीर ने कहा है कि मंदिर छोड़ो मस्जिद छोड़ो यह सब बिल्कुल फांका है यह दिल खास किसी का ना तोड़ो यह दिल खास खुदा का है अंधविश्वास के कारण ही लोग नरबलि तक दे रहे हैं । कबीर का तीसरा सिद्धांत है बाध्याडम्बर बायआडंबर आंतरिक गुणो को सत्संग अध्ययन, चिंतन मनन के माध्यम से लोगों को एकत्रित करने के लिए संकेत किए हैं । बाहरी दिखावटी गुणो को सजाने को रोकने लिए इशारा दिए हैं । मौलाना पंडितों को आध्यात्मिक तथ्यों को उदाहरण देकर निर्भीक होकर कई कविताओं में कहा है यहां तक कि साधुओं को भी फटकारते हुए कहा है कि दढिया बढ़ाएं योगी बन गईलै बकरा मन् न रंगाये रंगाये योगी कपड़ा मिथ्या पाखंडों को नष्ट किए हैं ।‌ कबीर का चौथा सिद्धांत है छुआछूत , ेसमाज में छुआछूत इतनी ऊंचाइयों पर था कि जाति के आधार पर लोगों को पीड़ित किया जाता था । शिक्षण संस्थानों में नामांकन भी पाना मुश्किल था । विद्वान होते हुए भी सम्मान नहीं दिया जाता था । उन दिनों कबीर ने कहा है की जात न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान मोल करो तलवार की पड़ा रहने दो म्यान । कबीर द्वारा निम्न जातियों में तुलसी ,चंदन ,माला ,श्वेत ,वस्त्र एवं सत्संग का प्रचार प्रसार किया गया , ताकि छुआछूत का निवारण हो सके कबीर का पांचवा सिद्धांत है प्रेम , केवल प्रेम ही सर्वप्रथम और सार्थक सिद्धांत है लेकिन जिस व्यक्ति द्वारा अहिंसा अंधविश्वास बायआडंबर छुआछूत विषयों को पूर्ण रूपेण समझकर पालन कर सकेगा । वहीं प्रेम सिद्धांतों को पालन कर सकेगा । प्रेम के ऊपर ही इनकी अत्यधिक कविताएं कहानियां भजन गीत कई भाषाओं में प्रचलित है गुरु महिमा के माध्यम से संसार के प्राणियों को समझाने के लिए स्पष्ट रूप से कहा है कि गुरु ही ब्रह्मा ,विष्णु ,शिव सब देवता हैं गुरु पूजा ही कबीर के दृष्टिकोण में सर्वोत्तम पूजा है यहां तक उन्होंने कहा है कि गुरुदेव और भगवान यानि गोविंद एक ही जगह दोनों हो तो पहले गुरु की ही पूजा करेंगे , क्योंकि गुरु अध्यात्म की सारी शक्ति अर्थात गोविंद को भी पहचाननें की शक्ति हमें गुरुदेव के द्वारा ही प्राप्त हुआ है कि गुरु गोविंद दोऊ खड़े काको लागू पांय बलिहारी गुरु अपने जिन गोविंद दियो बतायं । इनके प्रत्येक कविताओं को विद्वान अपने-अपने विचार से सरलार्थ , भावार्थ एवं गुप्तार्थ रूप से स्पष्ट किए हैं इनकी उल्टी वाणियां भी शिक्षाप्रद एवं गहरी अध्यात्म तथ्यों को प्रकाशित करती है। चलती को गाड़ी कहे , बढ़नी घटता रोज नीच को ऊंचा कहे जग का बढ़ता बोझ।‌ गुरुदेव को ही अपने सिद्धांतोंनुसार पति परमात्मा का स्थान दिए हैं । अंत में सबसे जानने योग्य बातें हैं कि उनके सभी सिद्धांत शरीर के अंदर ही है बाहरी कहीं नहीं जो इनके कविताओं से स्पष्ट हो जाता है संत स्वयं परमात्मा संत के मुख में वेद संत किसी जाति की नहीं संत में कछु नहीं भेद ।‌जो कछू खोज हूं संते मांही कछू न मिलि है अंते मांही ।‌ अभिवादन के शब्द भिन्न-भिन्न धर्मो पंथो में भिन्न-भिन्न शब्दों में है कबीर पंथ में अभिवादन के शब्द हैं साहेब बंदगी ।

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