स्वच्छता का महत्व और हमारी जिम्मेदारी

मिथलेश दास
शोधार्थी (हिंदी विभाग)
राधा गोविन्द विश्वविद्यालय, रामगढ़ (झारखंड)

गांधीजी के नेतृत्व में भारतीयों को आजादी तो मिल गई, लेकिन स्वच्छ भारत का उनका सपना आज भी अधूरा है। महात्मा गांधी ने कहा था “स्वच्छता स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है”। उन्होंने साफ-सफाई और स्वच्छता को अपने जीवन शैली का अभिन्न अंग बनाया। उनका सपना सभी के लिए संपूर्ण स्वच्छता का था। शारीरिक खुशहाली और स्वस्थ वातावरण के लिए स्वच्छता सबसे महत्वपूर्ण है। इसका असर सार्वजनिक और व्यक्तिगत स्वच्छता पर पड़ता है। हर किसी को स्वच्छता के फायदे और अस्वच्छ वातावरण स्थितियों के कारण होने वाली विभिन्न बीमारियों के बारे में सीखना आवश्यक है। कम उम्र में सीखी गई आदतें व्यक्ति के व्यक्तित्व में समाहित हो जाती हैं। भले ही हम छोटी उम्र से ही भोजन से पहले हाथ धोना, दांतों की नियमित सफाई और स्नान जैसी कुछ आदतें विकसित कर लें, फिर भी हमें सार्वजनिक स्थानों की साफ-सफाई की कोई परवाह नहीं है। महात्मा गांधी ने कहा था, “मैं किसी को भी अपने गंदे पैर अपने दिमाग से गुजरने नहीं दूंगा।”

महात्मा गाँधी के 154 वीं जन्मदिन के अवसर पर हमें उनके स्वच्छ वातावरण एवं स्वछता को लेकर दिए गए संदेशों को याद कर आज के समय में लागू करने की आवश्यकता है। गाँधी जी ने अपने जीवन में स्वच्छता का महत्व को माना और उन्होंने यह संदेश दिया कि स्वच्छता हमारी जिम्मेदारी है। स्वच्छता हमारे स्वास्थ्य, पर्यावरण, और समाज के विकास का अभिन्न अंग है लेकिन विडम्बना है कि स्वच्छता का सीधा सम्बन्ध हमारी सेहत से होने के बाद भी हमारे समाज मे इसके प्रति घोर उदासीनता दिखलाई पड़ती है। हाँ, कभी-कभार कुछ बातें जरूर होती है पर वे बातें भी ज्यादातर रस्मी तौर पर ही कर ली जाती है। इधर अब सरकारों ने स्वच्छता पर फोकस करना शुरू तो किया है पर अब भी यह सरकारीकरण से बाहर आकर लोगों के लिये जन अभियान का रूप नहीं ले पा रहा है।

महात्मा गाँधी ने स्वछता के महत्व को 1910–20 के दशक में ही समझ ली थी और उन्होंने इसके महत्त्व पर रोशनी डालते हुए तब कहा था कि स्वच्छता आजादी से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। लेकिन गाँधी की इस बात को हम या तो भूल गए या अब तक नहीं समझ पा रहे हैं। इसके लिये अब भी सरकारों को निर्मल भारत और स्वच्छता अभियान चलाने पड़ रहे हैं। बात–बात पर गाँधी का अनुसरण करने की बातें करने वाले भी अपने परिवेश की साफ़–सफाई के लिये खुद भी जवाबदेह नहीं हो पा रहे हैं।लगता है कि हम अपनी सेहत को ठीक रखने या उसकी चिन्ता करने का काम भी सरकार के हवाले कर चुके हैं। जो स्वच्छता हमें अपने आसपास रखनी चाहिए उसके लिये भी अब हम सरकार की तरफ टकटकी लगाए देखते रहते हैं कि एक दिन सरकार आएगी और हमारे आसपास की गन्दगी को दूर कर इसे साफ़ करेगी और इस झूठी आस में हम बीमार-पर-बीमार होते रहते हैं लेकिन कभी आगे बढ़कर हमारे आसपास की ही सही साफ़-सफाई के बारे में न सोचते हैं और न ही कभी करते हैं।
कुछ लोग सफाई पसन्द जरूर होते हैं पर वे भी अपने घर की अच्छी तरह से साफ–सफाई करने के बाद इकट्ठा हुए कूड़े–कचरे को या तो सड़क पर या चौराहे के पास या सरकारी इमारतों के अहातों में डाल दिया करते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों पर गौर करें तो साफ़ है कि हमारी ज्यादातर बीमारियों के लिये हमारे द्वारा फैलाया गया कूड़ा–कचरा ही जिम्मेदार है। इसी वजह से हमारे नदी–नालों सहित जल स्रोत लगातार प्रदूषित होते जा रहे हैं। यहाँ तक कि कई जगह हमारा भूगर्भीय जल भंडार भी इससे अछूता नहीं रह पा रहा है। कई स्थानों पर भूमिगत जल स्रोत गन्दा या प्रदूषित हो गया है। इनमें उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक पदार्थों को बिना उपचारित किये जमीन में छोड़ देने या नालों में बहा देने जैसी स्थितियाँ भी शामिल हैं।

शहरी क्षेत्र की झुग्गी बस्तियों, अर्द्ध शहरी और ग्रामीण इलाकों में छोटे बच्चे ज्यादातर बीमार पड़ते रहते हैं। कभी उन्हें बुखार आता है तो कभी दस्त लगते हैं। इसी प्रकार मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों का प्रकोप भी कम नहीं है. इसका कारण क्या है – अस्वच्छता। उनके आसपास जिस तरह का अस्वास्थ्यकर परिवेश होता है वह उन बच्चों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर डालता है। उन्हें बार–बार बीमार बनाता है और कई स्थितियों में यही कुपोषण का भी कारण बनता है। ज्यादातर बच्चों के पेट में कीड़े यानी टेप वर्म, हुक वर्म या राउंड वर्म पाये जाते हैं। ये उनकी पाचन क्षमता को प्रभावित करते हैं और पर्याप्त खाने के बाद भी बच्चा कमजोर या कुपोषित ही बना रह जाता है। घर के आसपास ही शौच जाने से कई कीटाणु हमें बीमार करते हैं। आमतौर पर गाँवों के घरों में शौचालय नहीं ही होते हैं और शौच के लिये सभी लोग गाँव के बाहर जाते हैं। इससे गन्दगी बढ़ जाती है जबकि शौचालय के इस्तेमाल से स्वच्छता बनी रहती है और बीमारियों की रोकथाम भी सम्भव है। इससे घर की महिलाओं को होने वाली परेशानियों से भी निजात मिल जाती है।

निजी साफ़-सफाई और हाथ धोने की आदत नहीं होने से भी बीमारियाँ पनपती हैं। आदतें बदलना इतना आसान नहीं होता लेकिन प्रयास तो किया ही जा सकता है। ग्रामीण इलाकों में रहने वालों और कम पढ़े–लिखे लोगों में यह धारणा बहुत दृढ़ है कि उनके जीवन पर असर डालने वाली अधिकांश स्थितियों पर उनका कोई बस नहीं है, वे उनकी जद से बाहर हैं और वे बेबस हैं। बीमारी और प्राकृतिक आपदाओं को आमतौर पर परालौकिक शक्तियों का प्रभाव माना जाता है जबकि स्वास्थ्य और शिक्षा के जानकार बताते हैं कि यही बात उनके जीवन को और परेशानी में डाल देती है।

वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो मनुष्य खुद कई घटनाओं और स्थितियों को नियंत्रित कर सकता है। यदि वे स्वच्छता से जुड़े कुछ छोटे–छोटे उपाय ही कर लें तो खुद और परिवार को तो स्वस्थ रखेंगे ही अपने पड़ोसियों को भी बीमारियों से दूर रख सकेंगे। लोगों में जागरुकता के अभाव के चलते वे समझ ही नहीं पाते कि इन स्थितियों के लिये वे खुद और उनके आसपास की गन्दगी ही जिम्मेदार है। सेहत और स्वच्छता आपस में बहुत गहरे रूप में जुड़े हुए हैं और बिना स्वच्छता के अच्छी सेहत की बात करना भी बेमानी ही है।

आज के दौर में लोगों को जागरूक करने और उनमें राष्ट्रीयता की भावना पैदा करने में सोशल मीडिया की भूमिका अहम है। स्वच्छता केवल सफाई कामगार या स्थानीय सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। यह सभी भारतीयों की जिम्मेदारी है।’
महात्मा गांधी ने स्वच्छता को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना और इसे अपने सत्याग्रह आंदोलन के माध्यम से स्थायीत किया। स्वच्छता हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि सफाई के अभाव में रोगों का प्रसार होता है। यह भी हमारे पर्यावरण के लिए आवश्यक है, क्योंकि स्वच्छता के अभाव में प्रदूषण बढ़ता है और प्राकृतिक संसाधनों को नुकसान पहुंचाता है। स्वच्छता का संदेश असमाजिक ताकदवरों के खिलाफ भी एक शक्तिशाली उपाय है, और यह समाज में सशक्ति और एकता की भावना को बढ़ावा देता है।
इसलिए, हमें अपनी जिम्मेदारी के साथ स्वच्छता को अपनाना चाहिए और अपने आसपास के लोगों को भी इसके महत्व के बारे में जागरूक करना चाहिए। स्वच्छता को एक सामाजिक आदर्श के रूप में देखना चाहिए और महात्मा गांधी के संदेश को अपने जीवन में एक जीवन शैली के रूप में स्वीकार करना चाहिए, ताकि हम स्वच्छ, स्वस्थ, और समृद्ध भारत की ओर एक कदम और बढ़ा सकें।

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