पूनम शर्मा की कविता शबरी

शबरी

झूठे बेरों पर ही रीझ गए थे श्री राम,
आज वो बेर नहीं
जो भा जाएं सीतापति को,,,,
रास्ता बदल वो,
पहुंच जाएं शबरी की कुटिया में
अब वो इंतजार नहीं शबरी जैसा,,,
विलुप्त है शबरी ,राम नहीं आते,
कलयुगी बेर खट्टे,,,
अब चलचित्र की पात्र सी है शबरी,
इंतजार-रत वनवासी राम,
जिनको फिर से
मीठे बेर खिलाए शबरी,
अतृप्त भूखे वनवासी राम
भटकते जंगल जंगल,,,,
आज फिर वो स्वाद तलाशते
जो शबरी के झूठे बेरों
में समाहित था,,
कलयुगी शबरी ,कलयुगी बेर
तलाशती राम की आंखें,,,
अपने राम राज्य की शबरी को
फिर से,,,

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