धनबाद। समाज और शिक्षा विषय को लेकर व्यवहार न्यायालय के अधिवक्ता गजेंद्र सिंह ने अपने आलेख के माध्यम समाज में शिक्षा के रूप को बारीकी से बताया है।
आज के समय में लोगों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है। आज हमारी सरकार भी चाह रही है कि हमारा हर नागरिक शिक्षित हो । हर तरफ एक से एक कोचिंग संस्थान खुलती जा रहीं हैं, एक से एक कॉन्वेंट स्कूल, यहां तक की आज अगर ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि हमारे बीच के ही साधारण व्यक्ति भी अपनें बच्चों को विदेश तक उच्च शिक्षा प्रदान करने हेतु भेज रहें हैं। क्योंकि, आज Education Loan आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यही कारण है कि आज हमारे बीच के ही बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, डी सी, एस पी, और एक अच्छे वकील भी बन रहे हैं। लेकिन ध्यान देने योग्य वाली बातें यह है कि क्या इन बच्चों में एक मानवता का गुण, जो सबसे महत्वपूर्ण है, हम या हमारी शिक्षण संस्थान डाल पा रहीं हैं ? अगर दिल पर हाथ रखकर पूछें तो नहीं….. । क्योंकि, आज ध्यान देकर देखें तो पता चलता है कि हमारे या हमारे समाज के बच्चे, उच्च शिखर पर पहुंच तो जाते हैं, लेकिन उनमें जो गुण होनी चाहिए, जो एक सुदृढ़ और परिपक्व मानव में होता है, वो आज नगण्य के बराबर है। आज के बच्चे डी सी, एस पी, इंजीनियर, डॉक्टर, अधिवक्ता बनकर अच्छे सैलरी, अच्छे पैकेज में पहुंच तो जाते हैं, परंतु थोड़ी सी परेशानी आई तो आत्महत्या तक कर लेते हैं । छोटी छोटी बातों पर गुस्सा में किसी की मर्डर भी कर डालते हैं। पति पत्नी छोटी छोटी बातों पर तलाक ले लेते हैं। यही बच्चे बड़े होकर जब उच्च पद पर पहुंचते हैं तो किसी घोटाले में फंसकर पूरी जिंदगी जेल में गुजारते हैं या फिर बच भी गए तो बीमारियों से ग्रषित होकर जीवन के अंत तक भोगते हैं।
इन बातों से पता चलता है कि हम या हमारी शिक्षण संस्थान, आज इन बच्चों को सिर्फ पैसा कमाने या बनाने का मशीन बना रहे हैं । इन बच्चों में जो एक उत्कृष्ठ मानव का जो गुण या संस्कार जो होनी चाहिए, आज हम नहीं डाल पा रहे हैं । क्योंकि, आज सही शिक्षा का अभाव है ।
तो प्रश्न उठता है कि करें तो क्या करें …… ?
तो आइए, जानते हैं कि कैसे छोटी छोटी बातों पर ध्यान देकर आज हम अपनें बच्चों और समाज को कैसे सुधार सकते हैं ।
सबसे पहला कदम (खुद में सुधार लाएं ):-
आज हमें सबसे पहले अपनें आप में सुधार करना होगा । इस बात को मैं आप सभी को एक कहानी के माध्यम से बताना चाहूंगा, जो इस प्रकार है :-
एक बच्चा था, जो बहुत गुड़ खाता था, उस बच्चे की मां इस बात से बहुत परेशान रहती थी। वो लाख प्रयत्न कर के देख चुकी, लेकिन उसका बच्चा गुड़ खाना छोड़ ही नहीं रहा था। किसी ने उसे सलाह दिया कि फलाने जगह पर एक संत महोदय हैं, इसे उनके पास ले जाओ । वो मां अपनें बच्चे को लेकर, संत महोदय के पास पहुंच गई और संत महोदय से उस मां ने कहा कि महात्मा जी – मेरा बच्चा बहुत गुड़ खाता है । आप इसका कोई उपाय करें, जिससे ये गुड़ खाना छोड़ दे । महात्मा जी थोड़ी देर रुककर सोचने लगे और कुछ देर उपरांत, उन्होंने कहा कि इस बच्चे को लेकर मेरे पास एक सप्ताह बाद आईए । उस दिन मां अपनें बच्चे को लेकर घर चली आई । एक सप्ताह बितने के उपरांत वो मां अपनें बच्चे को लेकर संत महोदय के पास दुबारा पहुंच गई। संत महोदय ने बहुत ही प्रेम पूर्वक बच्चे के सिर पर हाथ रखकर कहा-” बालक तुम आज से गुड़ खाना छोड़ दो ।” फिर संत महोदय ने उस माता से कहा कि अब आप अपनें बच्चे को लेकर घर जाईए । अब ये गुड़ खाना छोड़ देगा । मां अपनें बच्चे को लेकर घर चल दी । लेकिन रास्ते में सोचते आई कि संत महोदय ने मुझे कोई उपाय नहीं बताया, सिर्फ इतना कहा कि बालक तुम आज से गुड़ खाना छोड़ दो। जब इतनी सी ही बात बोलनी थी तो वे मुझे एक सप्ताह बाद क्यूं बुलाए, पहली बार में ही क्यों नहीं मना कर दिया था । इस बात को लगभग एक माह हो गया था । वह बच्चा अब बिल्कुल ही गुड़ खाना छोड़ दिया था । यह देखकर मां बहुत ही खुश थी । परंतु उसके मन में एक कौतूहल थी, जो वो संत महोदय से जानना चाहती थी । वो मां फिर एक दिन संत महोदय के पास पहुंच गई और बहुत ही प्रसन्न होकर बोली कि ” संत महोदय मेरा बेटा आपके मना करने से मान गया और गुड़ खाना छोड़ दिया है। परन्तु मेरे मन में एक कौतूहल है, कि जब मैं अपनें बच्चे को लेकर पहली बार आपके पास आई थी, तब भी तो आप उसे मना कर सकते थे, लेकिन आपने एक सप्ताह बाद बुलाकर, उसे गुड़ खाने के लिए मना क्यों किया ?” तब महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए उस मां से कहा कि उस समय मैं खुद गुड़ खाता था । एक सप्ताह में मैंने अपनी आदत को सुधारा, यानी गुड़ खाना पूर्ण रूप से छोड़ दिया। तब मैंने आपके बालक को गुड़ खाने से मना किया। अगर मैं पहली बार में उसे गुड़ खाने से मना करता तो वो नहीं मानता, क्योंकि उस समय मैं खुद गुड़ खाता था।
अतः उक्त वर्णित कहानी के माध्यम से मैं ये बताना चाहता हूं कि अगर जो गलती आप खुद कर रहे हैं, और अगर आप किसी को नसीहत देंगें तो उसका असर आपके बच्चे या किसी और पर नहीं पड़ेगा, या जो आपके पास नहीं है, वो चीज किसी और को कैसे प्रदान कर सकते हैं । और, वो चीज आपको कहां से मिलेगा, ये आपको खुद तलाशना होगा । क्योंकि कहा गया है “जहां चाह वहां राह ।”