ब्यूरो रिपोर्ट पीलीभीत
पीलीभीत | आजाद अधिकार सेना पीलीभीत ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लोकतंत्र के चोथे स्तम्भ को दबाने और कुचलने के गलत इरादों से पारित शासनादेश पर स्वत संज्ञान हेतु मुख्य न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय से सम्बन्धित जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय की ओर से स्वत संज्ञान लेते हुए हस्तक्षेप करने एवं आदेश को निरस्त करने की मांग की।
आजाद अधिकार सेना पीलीभीत ने उत्तर प्रदेश शासन के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद द्वारा समस्त मंडलायुक्त (उत्तर प्रदेश) एवं समस्त जिलाधिकारी (उत्तर प्रदेश) को दिनांक 16 अगस्त 2023 को पत्रांक संख्या 721/चौंतीस-लो0शि0-05/2023 (प्रतिलिपि संलग्न) जारी किया है, जो प्रथमदृष्टया संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के स्पष्ट विरोध में होने के कारण निरस्त किए जाने योग्य प्रतीत होता है।
आज़ाद अधिकार सेना इसका पुरजोर विरोध करती है, और इस लेटर पिटीशन के माध्यम से सादर अवगत कराना चाहती है कि यह मीडिया के अधिकारों पर कुठाराघात है। इस प्रकार के आदेश से संविधान में प्रदत्त मूल अधिकारों का हनन होगा। अर्थात लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप स्थापित मीडिया के दायित्वों पर अंकुश लगाए जाने का एक अनुचित प्रयास होगा।
इस शासनादेश की भाषा स्पष्ट रूप से ऐसी है जिसका एकमात्र अर्थ यह निकलता है कि पत्रकार और मीडिया सिर्फ और सिर्फ शासन के पक्ष की खबरें प्रकाशित करें, और कोई भी ऐसी खबर जो सरकार की सच्चाई को सामने लाता है या सरकार के नुमाइंदों, कारिंदों और इसके विभिन्न अवयव के संबंध में सरकार की निगाह में नकारात्मक खबरें सामने लाता है तो सरकार उसे पसंद नहीं करेगी और अपने अफसरों के माध्यम से इन मीडिया ग्रुपों और पत्रकारों का हिसाब किताब करेगी, उनके समाचारों के संबंध में उनका स्पष्टीकरण लगी और उनके विरुद्ध मनचाहा कार्यवाही करेगी।यदि इस आदेश को वापस नहीं लिया गया तो प्रदेश के सभी मीडिया संगठन संयुक्त रूप से आर- पार की लड़ाई लड़ने को विवश होंगे। शासन सकारात्मक खबरों की अपेक्षा करता है परंतु जब लेखपाल अपराधी है तो क्या लिखा जाएगा?
जब जिलाधिकारी किसी मामले का संज्ञान नहीं ले रहा तो क्या लिखा जाएगा?
जब तहसील दिवस और थाना समाधान दिवस में अनेकों मामले बार बार आने के बाद भी समाधान की दहलीज पर नहीं पहुंचते तो क्या लिखा जाएगा?
जब हर थाना भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा है तो क्या लिखा जाएगा? क्या व्यवस्था किसी योजना, विभाग, इकाई के बारे भ्रष्टाचार मुक्त होने का श्वेत पत्र जारी करने का मुद्दा रखती है, यदि हाँ तो जारी करें।
क्या सूचना एवं जनसंपर्क विभाग दूध का धुला है?
क्या बड़े अखबारों और चैनलों को भारी विज्ञापन उनके सिर्फ सकारात्मक खबरें चलवाने के लिए ही नहीं दिए जाते।
क्या सर्वोच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालयों के सभी आदेशों और निर्देशों पर अमल शुरू हो गया है?
क्या 2012 में लागू हुई नागरिक संहिता पूरी तरह लागू हो गयी?
क्या गृह विभाग की नागरिक संहिता के मुताबिक फरियादी के आवेदन पर पहले FIR दर्ज किए जाने के कानून का सभी थानों में अमल शुरू हो गया है?
अगर यह नहीं हुआ है तो कोई भी पत्रकार इन विषयों को सकारात्मक कैसे लिखे, और भला क्यों लिखे ?
इस शासनादेश में सरकार के अफसरों को इस बात की पूरी छूट दे दी गई है कि वे मीडिया और समाचार पत्रों के खबरों की मनमानी स्क्रुटनी करें, मनमाफिक खबरें प्रकाशित कराया जाना सुनिश्चित करें और ऐसा नहीं करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करें।
यह शासनादेश लोकतंत्र की मूल अवधारणा के पूरी तरह खिलाफ है और संविधान के अध्याय 3 के अनुच्छेद 19 में प्रदत्त स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा-सीधा हनन है। विशेष कर लोकतंत्र के चौथे स्तभ मीडिया के संबंध में जारी किया गया यह शासनादेश पूरे लोकतंत्र को दबाने और कुचलने का एक अनुचित प्रयास है।अत: आजाद अधिकार सेना ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से उक्त सन्दर्भ मे इस लेटर पिटीशन को स्वीकार करते हुए तत्काल इस प्रकरण की रिट याचिका के रूप में सुनवाई कर उक्त शासनादेश दिनांक 16 अगस्त 2023 को निरस्त करते हुये लोकतंत्र के चोथे स्तम्भ को निष्पक्ष, निडर और सत्यता के आधार पर लिखने की आजादी देते हुए लोकतंत्र की रक्षा करने की मांग की है।
इस अवसर पर आजाद अधिकार सेना पीलीभीत के जिलाध्यक्ष ललित शर्मा, बुद्धसेन कश्यप,योगेश शर्मा, राजकुमार वर्मा, प्रविन शर्मा, राहुल शर्मा, रमेश सक्सेना, सुमित गुप्ता, नन्हेलाल कश्यप, छत्रपाल सहित अन्य पदाधिकारी उपस्थित रहे ।