धनबाद। तरुण चंद्र राय। गुरु पर्व और कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में आज प्रधानमंत्री ने तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। पिछले एक साल से किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे थे। अब यह आंदोलन जय जय कार के साथ समाप्त हो जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद में हंगामा के बावजूद कृषि कानून को पास कराया। सरकार द्वारा लाई गई बिल में पहला था- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम -2020, दूसरा कानून था- कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 और तीसरा कानून था- आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020। इसी बिल का किसानों ने विरोध किया और आंदोलन कर बिल रद्द करने की मांग की किसानों को अपने फसल व जमीन खोने का डर सता रहा था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कृषि कानून को वापस लेते हुए कहा कि कानून वापस ले रहे हैं लेकिन इतनी पवित्र बात, पूर्ण रूप से शुद्ध, किसानों के हित की बात, हम अपने प्रयासों के बावजूद कुछ किसानों को समझा नहीं पाए. कृषि अर्थशास्त्रियों ने, वैज्ञानिकों ने, प्रगतिशील किसानों ने भी उन्हें कृषि कानूनों के महत्व को समझाने का भरपूर प्रयास किया। हमारी सरकार, किसानों के कल्याण के लिए, खासकर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, देश के कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेक नीयत से ये कानून लेकर आई थी।
प्रधानमंत्री भावुक दिखे। मगर सभी सुधार बेहतर हो या उसी रूप से देखा जाय जरूरी नही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबन्दी की और आतंकवाद व भ्रष्टाचार की कमर टूटने का भरोसा जताया। मगर नोटबन्दी ने लोगों को सड़क पर खड़ा कर दिया, बाजार को तबाह किया, रोजगार में कमी आई, बेरोजगारी बढ़ी, जीएसटी लागू करते हुए प्रधानमंत्री ने विकास का दावा किया, मगर व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, छोटे उद्योग में ताला लटक गया। मंहगाई को अलग से पंख मिल गया। कोरोना संक्रमण काल मे लॉक डाउन लगाया और एक दिन, 24 दिन में स्थिति को नियंत्रण करने का दावा कर लॉक डाउन बढ़ता गया और मजदूरों को काम छोड़ पैदल ही हजारो किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा, इसी दौरान तेजी से काम छूटने , व्यपार बंद होने से आत्महत्या के आंकड़े डराने लगे। इसी दौर में किसानों के हित की बात कह कृषि कानून में बदलाव कर तीन कृषि बिल को संसद में लाया गया और विरोध के बाद भी प्रधानमंत्री अड़े रहे। भाजपा ने पूरे देश मे किसानों को लाभ देने की बात और घर घर भेजा। मगर किसानों को अपना फसल व जमीन खोने का डर सता रहा था। सो वे आंदोलन को बाध्य हुए।
दिल्ली बॉडर पर विरोध कर रहे किसानों को नकली व फर्जी किसान कहा गया। खालिस्तानी व आतंकवादी बताया गया। विदेशी चंदा पर आंदोलन को चलाने का आरोप लगाया गया। आंदोलन को ध्वस्त करने के लिए लाठी चार्ज से गाड़ी तक चढ़ा दी गई।
खैर गुरु नानक जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री ने भरे मन से कृषि कानून को वापस लेने की बात कही। इसे प्रधानमंत्री की संवेदनशीलता और विशाल हृदय का धोतक करार दिया जा रहा। कृषि कानून की वापसी को आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भी देखा जा रहा है। इसे सरकार का डर बताया जा रहा। अब देखना है कि भाजपा इसे चुनाव में कैसे लेती है और बढ़ती महंगाई के साथ जनता कैसे लेती है।