शोध के क्षेत्र में डॉ. अरविंद कुमार पाण्डेय जी को मिला : सम्मान 2023

रांची :शोध के क्षेत्र में जितना ज्यादा ध्यान दिया जाएगा उतना ही ज्यादा देश के नाम उपलब्धियां होगी। हमारे आस पास

जितने भी सुख सुविधा की वस्तुएं हैं, वह सभी शोध के ही परिणाम है।लॉर्ड गौतम बुद्धा ट्रस्ट, कोकर एवं अंतर्राष्ट्रीय भारत सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम “ सम्मान – 2023 ” के तहत शोध के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु डॉ अरविंद कुमार पाण्डेय जी को अंग वस्त्र एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया ।
डॉ अरविन्द कुमार पाण्डेय का जन्म पूर्वी  उत्तर प्रदेश के वस्ती जिले के धायपोखर गॉंव के कुलिन परिवार में 10 अगस्त 1954 को हुआ था ।  प्रारंभिक शिक्षा गॉंव के विद्यालय से  प्रारंभ हुई। अरविन्द कुमार बचपन से ही कुषाग्र बुद्धि के छात्र थे । मात्र 14 वर्ष की उम्र में उत्तर प्रदेश इन्टरमीडियट परीक्षा में 7वीं स्थान प्राप्त कर जिले में प्रथम स्थान से उर्तीण हुए। पढ़ने की ललक और कुछ नया करने का जिज्ञासा शुरुआती दौर से ही है। इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय से बी. एस. सी. 1970, एम. एस. सी. 1972 से नाभकीय विज्ञान में प्रथम श्रेणी में उर्त्तीण होकर शोध कार्य हेतु प्रोफ़ेसर जे. वी. नारलीकर के साथ टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ फंडामेंटल, मुम्बई गए। किन्तु जिस विषय पर शोध कार्य करना चाहते थे उस विषय पर वहां के शिक्षाविदों का मत था कि शोध छात्र के स्तर पर ब्रह्माण्ड की इतनी बड़ी गुत्थियॉं जिनसे विश्व के वरिष्ट वैज्ञानिक सदियों से सिर टकरा रहे हैं संभवतः उपयुक्त नहीं होगा, किन्तु इस चुनौती को स्वीकार करते हुए इन्होंने अपना शोध कार्य वर्ष 1978 में संपन्न कर पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की।बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अरविन्द कुमार पाण्डेय ने इसी बीच विमान चालक का भी प्रशिक्षण लिया ।

विमान चालक का छात्र लाइसेंस 1975 में ही प्राप्त कर लिया। अपने गुरू डॉ. जयन्त विष्णु नारलीकर तथा डॉ. अलख निरंजन मंत्री के मार्ग दर्शन में उन्होंने सरकारी सेवा में शामिल होने के निर्णय लिया ताकि  देश के वरीय वैज्ञानिक संस्थानों और सरकार के बीच में सेतु का काम कर सके। अपनी सेवा के आरंभिक दिनों में आगरा में डिप्टी कलेक्टर के रुप में कार्य करने के बाद 1981 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में मंसूरी लालबहादुर शास्त्री अकादमी में योगदान दिया दो वर्ष के  प्रशिक्षण के बाद बिहार कैडर के डॉ. पाण्डेय द. छोटानागपुर वर्तमान में झारखण्ड के बेरमो प्रखंड के एस. डी. ओ. में 1983 में पदस्थापित हुए 2/1/2 वर्ष तक एक लोकप्रिय एंव समर्पित पदाधिकारी के रुप में लोंगो के मन में छाए रहे। यहॉ के जनमानस तक पहुॅंचने के लिए चप्पे-चप्पे की यात्रा की। इनके बारे में प्रसिद्ध है कि एक जातीय दंगे से लोंगो का सुरक्षित बचाने के लिए और कोई उपाए न देखकर यात्रियों से भरी बस को स्वंय चलाते हुए पहाड़ी रास्ते से सुरक्षित स्थान पर चले गए थे और उन सभी के प्राणों की रक्षा इन्होंने की।अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा को प्रदर्शित करने का संयोग इन्हें तब मिला जब अविभाजित बिहार में इन्हें विज्ञान एंव प्रावैधिकीय विभाग में पदस्थापिता किया गया। अपनी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि के चलते ही राज्य तकनीकी शिक्षा परिषद् के अध्यक्ष का भी प्रभार दिया गया जिसको इन्होंने 4/1/2 वर्ष तक सुशोभित किया। इस पद पर कार्य करते हुए इन्होंने राज्य के तकनीकी  शिक्षा व अन्यत्र में जो योगदान दिया वह हमेशा याद किया जाएगा । पटना स्थित इंदिरा गॉंधी तारामण्डल के निर्माण में इनकी महत्वपूर्ण भुमिका रही। झारखण्ड बनने के बाद राज्य के प्रथम शिक्षा सचिव एंव प्रथम श्रम सचिव के पद का निर्वहन के बाद इन्हें मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के पद पर रखा  गया और राज्य के निर्वाचन सूची का कम्प्युटरीकरण तथा फोटो पहचान पत्र की कठिन चुनौती सामने खड़ी थी इन्होंने इसे सफलतापूर्वक संपन्न किया। बल्कि इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन के द्वारा राज्य का पहला निर्वाचन भी इनकी देख रेख में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ जिसके बारे में भारत निर्वाचन आयोग की टिप्पणी थी कि इसमें इनका योगदान तथा कार्यकुशलता वर्षो तक एक उदाहरण बनी रहेगी।अपने व्यस्त दिनचर्या के बावजूद इन्होंने अपनी वैज्ञानिक सोच और आम समाज से जुड़ाव की चाहत को जीवित रखा और इसी के चलते रॉंची शहर के आम लोंगो ने रोटरी क्लब की गतिविधियों से जोड़े रखा । वर्ष 2007-2008 में रांची रोटरी की मुख्य शाखा के अध्यक्ष भी रहे हैं। इसके साथ ही अपने पूर्ववर्…

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