गिरिडीह। संस्था झारखंडी एकता संघ के केंद्रीय सदस्य तौफीक अंसारी ने कहा कि पारसनाथ पहाड़ से हम झारखंडियों की पहचान जुड़ा है। झारखंड प्रदेश का सबसे बड़ा पहाड़ पारसनाथ पहाड़ है। इसे आज नहीं हम लोग बचपन से जान रहे हैं। बहुत सारे जनरल नॉलेज किताबों में भी पढ़ चुका हूं। और हमारे पूर्वज बताते हैं कि जैन समुदाय के तीर्थयात्री लोग यहां आते हैं और अपने पूजा अर्चना एवं यात्रा पुरा करते हैं। इससे हमें कोई आपत्ति नहीं है। हमारे झारखंड प्रदेश में तीर्थयात्री आते हैं तो हम झारखंडी लोग सब तीर्थ यात्रियों का सम्मान करते हैं। हम झारखंड प्रदेश के जनमानस लोगों का यही कल्चर अभी तक रहा है की हम सभी धर्मों, धर्मगुरुओं और धर्म को मानने वाले लोगों का सम्मान करते आए हैं। सभी धर्म के लोग हमारे झारखंड प्रदेश में आ सकते हैं। जहां से जिनकी आस्था जुड़ी है। वहां पूजा अर्चना या उनका धर्म जो बताता है। उसके मुताबिक कर सकते हैं। इससे हम झारखंडियों का कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन झारखंड के धरोहरों का मालिक बनना चाहेंगे तो हम झारखंडी जनमानस लोग इसे कभी बर्दाश्त नहीं करेंगे। रही बात पारसनाथ पहाड़ का तो झारखंड सरकार पारसनाथ पहाड़ को 2019 में पर्यटन स्थल घोषित कर चुका है तो फिर इसे तीर्थ स्थल क्यों घोषित किया गया? हमें ऐसा महसूस हो रहा है कि राज्य एवं केंद्र सरकार अंग्रेजों जैसा चाल चलना शुरू कर दिया है। जिस तरह अंग्रेजों ने हमारे देश में फूट डालो और राज करो की नीति अपनाया था। उसी तरह हमारे देश की सरकारें नीति लेकर आ रहे हैं और हम भारतवासियों को आपस में लड़ा रहे हैं। लेकिन सरकार यह ना भूलें कि झारखंड क्रांतिकारी लोगों का प्रदेश रहा है। झारखंड के जनमानस इस नीति को कभी भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। झारखंड प्रदेश के सभी क्रांतिकारी युवा साथियों से मैं निवेदन करना चाहता हूं कि आंदोलन को धार-धार बनाया जाए। पारसनाथ पर्वत किसी भी बाहरी लोगों का बाप का जागीर नहीं है। यह तीर्थभूमि वंदनीय है और रहेगी। इसका मतलब यह नहीं कि यहां की जनता को अपने ही पर्वत पर जाने के लिए प्रमाण पत्र देना होगा। तीर्थयात्री यात्रा करने आते हैं। यात्रा करें, मालिक बनने का प्रयास न करें। अन्यथा पारसनाथ सहित पूरे प्रदेश में माहौल अनियंत्रित होगा। इसका जिम्मेदार प्रशासन और सरकार होगी। पारसनाथ पहाड़ पर्यटन स्थल ही रहे और पारसनाथ पहाड़ के क्षेत्र में विधि व्यवस्था को झारखंड की जनता व स्थानीय प्रशासन तय करेंगे। एक बार फिर मैं सभी झारखंड प्रदेश के जनमानस एवं क्रांतिकारी युवाओं को कहना चाहूंगा कि आंदोलन को कमजोर होने ना दें और सभी जाति धर्म के लोग एक साथ मिलकर पारसनाथ पहाड़ बचाने के लिए आगे आएं। पारसनाथ पहाड़ झारखंडियों का था, है और रहेगा।