धनबाद के इस गांव में बाप नहीं ब्याहना चाहते बेटियां, 40 प्रतिशत युवा कुंवारे, कारण पानी है ‘बीमारी वाला ‘

धनबाद।झरिया।असलम।अंसारी। धनबाद जिले के बलियापुर प्रखंड के घड़बड़ पंचायत के युवा चिंतित हैं. चिंता का कारण है, उनके लिए विवाह का प्रस्ताव नहीं आना. उनकी उम्र 30 से 40 साल हो गई है. वे इंतजार में हैं, लेकिन, लोग इस पंचायत में अपनी लड़कियों का विवाह नहीं करना चाहते हैं. कारण है, इस पंचायत के पानी का गड़बड़ होना. पंचायत के पानी में फ्लोराइड ज्यादा है, जो हड्डियों के लिए नुकसानदेह है. पंचायत के लगभग 40 प्रतिशत युवा कुंवारे बैठे हैं.

घड़बड़ पंचायत का पानी है गड़बड़
धनबाद शहर से लगभग 33 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बलियापुर प्रखंड के घड़बड़ पंचायत में ब्राह्मण टोला है. मुख्यतः इस गांव के युवा की शादी नहीं हो रही है. ऐसे भी कह सकते हैं कि कोई पिता अपनी पुत्री को ब्याहने के लिए यहां नहीं पहुंचते. स्थानीय युवा सुशांत सरखेल ने कहा: ‘करीब 40 युवा हैं, जिन्होंने 30 वर्ष की आयु पार कर ली है. लेकिन उन्हें शादी के प्रस्ताव नहीं मिल रहे हैं क्योंकि सभी ब्राह्मण टोला के निवासियों को प्रभावित करने वाले फ्लोराइड के दुष्प्रभावों से अवगत हैं.’ गड़बड़ पंचायत निवासी जितेंद्र सर्खेल का कहना है कि इस गांव में परिजन नहीं आना चाहते हैं. अगर आना भी हुआ, तो वे अपने साथ पीने का पानी लेकर आते हैं.

इस गांव के लोग मुस्कुराना नहीं चाहते
घड़बड़ पंचायत में कुल आठ गांव है, जिसके भूजल में फ्लोराइड की मात्रा है. पर सबसे अधिक ब्राह्मण टोला के भूजल में है. यहां फ्लोरोसिस के रोगियों की संख्या सबसे अधिक है. दागदार दांत, विकृत और कमजोर हड्डियां और कंकाल जैसा शरीर फ्लोरोसिस के सामान्य लक्षण हैं. हद यह है कि इस गांव के कोई मुस्कुराना नहीं चाहता, क्योंकि ऐसा करने से उनके दागदार दांत दिख जाएंगे.

गांव से बाहर जा रहे हैं युवा
35 की उम्र पार कर चुके सुशांत सर्खेल गांव से बाहर रहते हैं. उन्होंने कहा कि गांव में पानी की समस्या है, उससे बचने के लिए वह निरसा में रहकर प्राइवेट जॉब करते हैं. उन्होंने कहा कि उनकी शादी अब तक नहीं हुई है, जिसका मुख्य कारण इस गांव का दूषित जल है. कानंद सर्खेल ने कहा : ‘जीवन 40 के बाद तेजी से लुप्त होने लगता है. हमें बुद्धिजीवियों और डॉक्टरों के द्वारा सलाह दी गई है कि नहाने के लिए भी गांव के नल या हैंडपंप के पानी का उपयोग न करके बोतलबंद पानी का उपयोग करना चाहिए. लेकिन, 25 रुपये में मिलने वाला 20 लीटर पानी का जार ग्रामीणों के लिए महंगा है, यहां के ज्यादातर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं. इसलिए, बोतलबंद पानी का उपयोग जीवित रहने के लिए एक आवश्यक दवा के रूप में करते हैं .

फ्लोराइड से 99 प्रतिशत लोग प्रभावित
भूजल में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने से गांव के 99 प्रतिशत लोग प्रभवित हैं. देवाशीष सर्खेल ने कहा कि उन्हें कोई हल्का सा धक्का दे दे, तो वे गिर जाएंगे. उनके शरीर में ताकत नहीं है. हड्डियां कमजोर हो गई है. इस गांव में पैदा लेने वाले बच्चों पर भी इसका गहरा असर है. बच्चों के दांत पीले पड़ कर टूट रहे हैं. उनकी हड्डियां कमजोर हो रही है. पानी की जांच के बाद विभाग के द्वारा किया गया जलमीनार का निर्माण , वो भी बेकार

टंकी बनी, उसमें भी दूषित पानी
जितेन सर्खेल ने कहा कि जिला प्रशासन के अधिकारियों ने पिछले 15 वर्षों में कई बार गांव का दौरा किया, जिसमें पानी की जांच के बाद गांवों के नल और हैंडपंपों में फ्लोराइड की मात्रा एक लीटर में 0.3 मिलीग्राम से 14.9 मिलीग्राम के बीच पाई गई है. गांव में 2016 में पानी टंकी का निर्माण तो कर दिया गया, लेकिन उसमें भी दूषित पानी की सप्लाई होती है . वह भी कभी महीने में 10 दिन तो कभी 15 दिन या फिर कभी कभी पूरे महीने में 7 दिन पानी मिलता है, जो पीने योग्य नहीं होता है.

दिक्कत तो है : सिविल सर्जन
सिविल सर्जन डॉ. श्याम किशोर कांत ने कहा कि वहां के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने से लोगों की हड्डियां कमजोर हो जाती है, लोग बहुत जल्द झुक कर चलने को मजबूर हो जाते हैं. इसके अलावा दांतों का टूटना एवं दांतों पर पीलापन आ जाना मुख्य लक्षण हैं.

क्या है फ्लोराइड
फ्लोराइड भू-पटल में बहुतायत से पाया जाने वाला तत्व है. इसकी खोज प्रोफेसर हेनरी मॉइसन द्वारा सन् 1886 में की गई थी. प्रोफेसर हेनरी को उनकी उपलब्धियों के लिए 1905 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. पानी में एक सीमा से ज्यादा फ्लोराइड नुकसानदेह होता है. फ्लोराइड से होने वाले प्रभाव को फ्लोरोसिस कहते हैं .

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