जमुई बिहार/ चुन्ना कुमार दुबे/ जमुई व्यवहार न्यायालय के समीप यमुना सिंह पार्क में शहादत दिवस का आयोजन किया गया। मौके पर देश के लिए हंसते – हंसते फांसी के फंदे को चूमने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को उनकी शहादत के लिए याद किया गया और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 23 मार्च 1931 में इन तीनों भारत के सपूतों ने मां भारती के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी। बेहद कम उम्र में उन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था जिला विधिज्ञ संघ के अध्यक्ष अश्विनी कुमार यादव ने शहीद दिवस पर भारत माता के अमर सपूत वीर भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को कोटि – कोटि नमन करते हुए कहा कि मातृभूमि के लिए मर मिटने का उनका जज्बा देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा। उन्होंने उन्हें हृदयतल से नमन किया
अधिवक्ता रूपेश कुमार सिंह ने तीनों शहीदों की देशभक्ति को सलाम करते हुए कहा कि विदेशी शासन के दौरान आजादी की अलख जगाने में इन तीनों शहीदों का अमूल्य योगदान है आज भी भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं अधिवक्ता सीताराम सिंह ने इस अवसर पर कहा कि देश के स्वतंत्रता आंदोलन के अमर प्रतीक शहीद भगत सिंह , सुखदेव एवं राजगुरु के शहीदी दिवस पर मैं उन्हें कोटि – कोटि नमन करता हूं। देश के इन वीरों के अमर बलिदान का हर देशवासी सदा ऋणी रहेगा। उन्होंने उनके देश के प्रति निष्ठा को आत्मसात किए जाने की अपील की।
जिला संवाददाता डॉ. निरंजन कुमार ने भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को याद करते हुए कहा कि वे तीनों एक विचार बन गए हैं और हमेशा जीवित रहेंगे। भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु वह विचार हैं जो सदा अमर रहेंगे। जब – जब अन्याय के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ उठेगी , तब तब उस आवाज़ में इन शहीदों का अक्स होगा। जिस दिल में देश के लिए मर – मिटने का जज़्बा होगा , उस दिल में इन तीन वीरों का नाम होगा
जिला विधिज्ञ संघ के महासचिव विपिन कुमार सिन्हा , साधना सिंह , समाजसेवी संतोष सिंह समेत कई प्रबुद्धजनों ने कार्यक्रम को संबोधित किया और अमर योद्धा को श्रद्धांजलि अर्पित की
उल्लेखनीय है कि दिसंबर 1928 को भगत सिंह , राजगुरु औऱ सुखदेव ने मिलकर लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी जेम्स स्कॉट को लाहौर में मारने की योजना बनाई थी। गलती से इन तीनों युवाओं के हमले में सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन सॉन्डर्स की जान चली गई। इसके बाद तीनों सेनानियों को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।