भुली। कोरोना के संक्रमण काल में बंद हुई शिक्षा व्यवस्था आज भी बदहाल है। पिछले ग्यारह माह से शिक्षा बंद है। अनलॉक के दौरान भले ही उच्च कक्षा की पढ़ाई चालू की गई मगर यहां भी सुचारू शिक्षा व्यवस्था लागू नही हुई है। ऑनलाइन शिक्षा व्यवस्था के भरोसे सरकार शिक्षा को दुरुस्त करना चाहती है। मगर देश व राज्य के भीतर ऑनलाइन शिक्षा की स्थिति ठीक नहीं है। शहरी क्षेत्र में 24 फीसदी से कम बच्चे ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं तो वहीं ग्रामीण क्षेत्रो में स्थिति 12 फीसदी से भी कम है। ऐसे स्थिति में ऑनलाइन शिक्षा कितना कारगर होगा इसे समझा जा सकता है। अनलॉक के दौरान राजनीति चुनावों में उलझी रही। सत्ता पाने – बचने को होड़ में राजनीति से शिक्षा गौण ही रही।
झारखंड की बात करें तो यहां भी चुनाव हुआ और राजनीतिक पार्टियां भले ही अन्य मुद्दों को लेकर सड़को पर झंडा लेकर आंदोलनरत रही है। चाहे सत्ता दल झामुमो हो या कांग्रेस या विपक्ष में रही भाजपा । मगर किसी के मुद्दे में शिक्षा नही है। कक्षा एक से सातवी तक की पढ़ाई अभी भी बंद है और नर्सरी की कक्षा को लेकर बात भी बेमानी होगी। सड़को पर झंडा लेकर आंदोलन करने और घर घर निधि संग्रह में राजनीतिक दल के निजी स्वार्थ निहित है और शिक्षा इनके मद्दे से कोसो दूर की कौड़ी है। उक्त बातें नागरिक संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष डॉ बालेश्वर कुशवाहा ने कही। डॉ बालेश्वर कुशवाहा ने कहा कि आज भले ही ग्यारह माह ही शिक्षा बाधित होने दिख रहा हो मगर आने वाले समय मे इसका प्रभाव दूरगामी होगा। खास कर प्रतियोगिता परीक्षा में शामिल होने वालों को आने वाले समय मे अभी भी कम से कम एक साल का नुकसान तो झेलना ही होगा। सरकार को यह तय करना होगा कि शिक्षा को लेकर कितना गंभीर है।