भारत का पहला पैरालंपिक स्वर्ण जीतने वाले मुरलीकांत की कहानी

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गया । पेटकर दृढ़ निश्चयी एवं कभी हार ना मानने यानि नेवर से डाई व्यक्तित्व पर एक प्रेरक व्याख्यान देने के लिए ऑफिसर ट्रेनिंग अकादमी गया में उपस्थित हुए हैं।भारत के प्रथम पैरा ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता तैराकी, मुरलीकांत पेटकर का जन्म 01 नवम्बर 1947 को महाराष्ट्र के सांगली जिले में हुआ था।श्री पेटकर का खेलों के प्रति प्रेम उनकी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा के वर्षों में ही झलकने लगा था,

जहां वे कुश्ती, हॉकी और एथलेटिक्स जैसे खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया करते थे। भारतीय सेना में भर्ती होने पर, उन्होंने जल्द ही स्वयं को एक मजबूत खिलाड़ी के रूप में स्थापित कर लिया और हर खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। 1964 में उन्हें टोक्यो, जापान में आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय सेवा खेल मीट में मुक्केबाजी में भारतीय सेना का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था।

वापस लौटने पर, उन्हें सिकंदराबाद स्थानांतरित कर दिया गया है, जहाँ उन्होंने फ़ौजी रूटीन के साथ साथ तैराकी की भी तैयारी शुरू कर दी है। पेटकर 1965 के भारत-पाक युद्ध की शुरुआत में कश्मीर में तैनात थे। उस युद्ध में इन्हें नौ गोलियां लगी थी| उस युद्ध की घटना को जीवंत करने वाली एक गोली आज भी उनकी रीढ़ में धंसी हुई है। हालांकि, असाधारण साहस दिखाते हुए, उन्होंने अगले दो वर्षों में सेहत महत्वपूर्ण सुधार किया।श्री पेटकर ने 1967 में शॉट-पुट, जेवलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो, वेट लिफ्टिंग, टेबल टेनिस और तीरंदाजी में महाराष्ट्र राज्य के चैंपियन का ख़िताब अपने नाम किया है।

वे लगातार राज्य चैंपियन बनने से लेकर राष्ट्र चैम्पियन बनने तक निरंतर आगे बढ़ते रहे और जल्द ही विभिन्न अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व किया है।उनकी कई नामचीन उपलब्धियों में से सबसे असाधारण उपलब्धि यह है कि मुरलीकांत पेटकर ने अगस्त 1972 में जर्मनी के हीडलबर्ग में आयोजित ग्रीष्मकालीन पैरालम्पिक में भारत को पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक दिलाया है। उसी इवेंट में, उन्होंने 50 मीटर फ़्रीस्टाइल तैराकी में एक नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया है। पूरे खेल करियर के दौरान उन्होंने इंग्लैंड में आयोजित स्टोक मैंडविल अंतर्राष्ट्रीय पैराप्लेजिक मीट जैसे इवेंट में देश के लिए सम्मान अर्जित किया है, जहाँ उन्होंने अपने पिछले रिकॉर्ड तोड़ते हुए निरंतर 5 वर्षों तक जनरल चैम्पियनशिप कप 1969-73 को अपने नाम किया है ।

एडिनबर्ग, स्कॉटलैंड में आयोजित तीसरे कॉमनवेल्थ पैराप्लेजिक गेम्स में उन्होंने 50 मीटर फ़्रीस्टाइल तैराकी में स्वर्ण, जेवलिन थ्रो में रजत और शॉट-पुट में कांस्य पदक जीता| हांगकांग में आयोजित FESPIC टक्कर खेलों में उन्होंने 50 मीटर तैराकी में एक और विश्व रिकॉर्ड स्थापित किया।महाराष्ट्र का सर्वोच्च खेल पुरस्कार, शिव छत्रपति पुरस्कार भी उन्हें 1975 में महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल नवाब अली यावर जंग के हाथों प्रदान किया गया था। यह उनकी विभिन्न एथलेटिक उपलब्धियों और इस तथ्य के मद्देनजर था कि वे 1968-76 तक लगातार 7 वर्षों तक राष्ट्रीय चैंपियन रहे, जिसके लिए उन्हें पुणे के तत्कालीन मेयर श्री थोराट द्वारा विशेष सम्मान भी प्रदान किया गया था।1972 में, उन्होंने टेल्को, पुणे में सेवा प्रारंभ की, जहाँ अब वे जनसंपर्क विभाग में वरिष्ठ सहायक के पद पर आसीन हैं। पेटकर ने एक पेशेवर खिलाड़ी के रूप में अपने असाधारण करियर में अनगिनत बाधाओं को पार किया है। उनके विभिन्न कारनामों के लिए उन्हें राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा व्यापक रूप से कवर किया गया है।वर्ष 2018 में श्री मुरलीकांत राजाराम पेटकर को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया।

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