झारखंड में प्रदेश नेतृत्त्व की खोज में अस्तित्व बचाने का खतरा

वर्तमान नेतृत्व से आदिवासी,अल्पसंख्यक और दलित नाराज बड़ा प्रश्न

देवेंन्द्र शर्मा – रांची

रांची : झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटि के नये अध्यक्ष पद के चुनाव में कई पेंच आलाकमान के समक्ष आ रहे है ।प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद पर भाजपा आलाकमान के द्वारा आदिवासी नेता के रुप में बाबूलाल मंराडी के रुप में मनोनयन किये जाने के बाद कांग्रेस आलाकमान इस उलझन में फस गया है कि यदि उन्होने किसी सामन्य समुदाय के नेता को झारखंड का प्रभार सौंपा त प्रदेश में कांग्रेस की लोकप्रियता पर इसका विपरीत असर होगा और यहां आदिवासी,पिछड़े, दलित के साथ ही साथ अल्पसंख्यक का एक बड़ा वर्ग नाराज न हो जाए। कुछ समय पूर्व आलाकमान के समक्ष जो नाम चर्चा में आये थे उनमें एक नाम काली चरण मुण्डा, बंधु तिर्की और गीता कोड़ा था ।चुकी तीनो नाम आदिवासी समुदाय से ही था ।इन सब में काली चरण मुण्डा की दावेदारी बहुत मजबूत मानी जा रही थी।आलाकमान की भी यही इच्छा सामने आ रही थी कि झारखंड का प्रभार किसी मजबूत आदिवासी नेता को ही दिया जाये जिससे लोगो के बीच अच्छा संदेश जा सके ।पार्टी आलाकमान ने स्पष्ट किया था कि पार्टी के किसी समर्पित कांग्रेसी नेता को प्रभार दिया जायेगा जो लोकप्रिय होगे।झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी में कुछ समय से गुटबाजी और खींचातानी, भेदभाव खुलकर किये जाने की खबर विभिन्न स्रोतों से आलाकमान के समक्ष रखी जा रही थी ।यह भी आरोप लगाया जा रहा था कि प्रदेश में एक भाजपा नेता अप्रत्यक्ष रुप से हस्तक्षेप कर कांग्रेस की छवि को धूमिल करने पर लगे हुए है।झारखंड के जमीन से जुड़े शीर्ष नेता भी धीरे धीरे अपनी गतिविधि को सीमित करना शुरु कर दिया था ।सरकार के कुछ नेताओं ने अपनी उपेक्षापूर्ण व्यवहार से त्रस्त हो गये थे। कांग्रेसजन का कहना था कि जब झारखंड प्रभारी से मिलने और समस्या रखने में बैरियर का सामना करना पड़ता है त वो किसके सामने अपनी बात रखे।सरकार के बोर्ड और आयोग का लाभ पार्टी में दूसरे दल से आये नेता को दिया जाने लगा तब यह आग में घी का काम कर गया ।पार्टी में सही बात कहने और आवाज उठाने पर कुछ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाये जाने पर भी पार्टी में अंतर्कलह चरम सीमा पर दिखाई दे रहा है।लोगो का यह आरोप है कि वो पार्टी के लिए अपना जीवन दान किया आज पार्टी उन्हे ही बाहर का रास्ता दिखा रही है ।आरोप यह भी है कि कांग्रेस में आज दूसरे दल से आने वालों की जमात सक्रिय हो गई है।वयोवृद्ध और जमीन से जुड़े नेताओ को उपेक्षित करने वालो के कारण भी प्रदेश कांग्रेस में नाराजगी साफ नजर आ रही ।अल्पसंख्यक समुदाय का बड़ा समूह ने कुछ समय पहले ही ओरमांझी के एक कार्यक्रम में चेतावनी देते हुए पार्टी से अलग होने की बात मंच से की थी।संथाल परगना सहित कई जिले में विरोध का स्वर साफ सुनाई दे रहा है जो कांग्रेस आलाकमान के लिए चिन्ता का बिषय बनता जा रहा है।भाजपा ने प्रदेश का जिम्मा एक आदिवासी नेता को सौंप कर अपना आदिवासी दलित पिछड़ा लोकप्रियता का कार्ड खेल कर पत्ता खेल चुका है।आलाकमान के समझ अब यह सवाल उठ खड़ा हो गया है कि वो क्या करे।यदि नेतृत्व का भार किसी दुसरे दल से आये नेता को दिया जायेगा तो पार्टी मे बिखराव तय है।गांधी परिवार की शुरु से झारखंड में अल्पसंख्यक आदिवासी और दलित पिछड़े समुदाय पर भरोसा पर सवाल उठ सकता है।कांग्रेस के समक्ष लोकसभा चुनाव और आगामी विधान सभा चुनाव एक पहाड़ की तरह खड़ा है थोड़ी भी चुक प्रदेश में कांग्रेस को हाशिए पर ला खड़ा कर देगा ।सूत्र का कहना है कि झारखण्ड में आदिवासी अल्पसंख्यक और दलित वर्ग को खुश करने के लिए विचार विमर्श जारी है।

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