भुली। भुली शिवपूती स्थित महर्षि मेंहीं आश्रम के बाबा सकलानंद जी महाराज में संतमत सत्संग को लेकर संतमत प्रार्थना को लेकर अपने पुस्तक संतमत प्रार्थना प्रबोध में प्रार्थना को लेकर विस्तृत व्याख्या की है।
बाबा सकलानंद जी महाराज ने प्रार्थना को लेकर कहा कि प्राणिमात्र स्वभाव से सुख के अन्वेषी होते हैं, कल्याणकामी होते हैं। समस्त योनि में मानव योनि को सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम, सर्वोपरि, सर्वोत्कृष्ट योनि माना गया है। सुख कहाँ कैसे किस विधि से मिले इसके लिए मानव हमेशा से खोज करता रहा है और सर्वोत्तम मार्ग प्रार्थना ही है। मगर प्रार्थना किस भाव से किया जाय इसका उद्देश्य क्या हो और प्रार्थना का माध्यम क्या हो यह बहुत जरूरी तत्व है।
बाबा सकलानंद ने बताया कि प्रार्थना सु-मन से किया जाना चाहिए और तामसिक प्रार्थना स्वीकार्य नही होती। ईश्वर आपके भाव को समझते हैं आपकी भावना आपकी प्रार्थना जगतगुरु परमेश्वर समझते हैं। स्व सुख शांति की प्रार्थना और मानव कल्याण व दूसरों के लिए की जाने वाली प्रार्थना का भेद परमपिता परमेश्वर जानते हैं। आपकी भाषा कोई भी हो, प्रार्थना का शब्द कुछ भी चयन किया हो भाव महत्व रखती है। आपके सुख शांति समृद्धि के साथ मानव कल्याण का भाव ही ईश्वर प्रार्थना रूप में स्वीकार करते हैं। आप किसी वर्ग, जाति, वर्ण , धर्म के हों, आपकी मान्यता कुछ भी हो आपका ईश्वर के प्रति प्रार्थना ही आपको वास्तविक सुख समृद्धि और शांति प्रदान करने वाला होगा।